वफ़ा ना रास आईं..... 💔 (13)
कुछ घंटों के सफर के बाद हम एक मंदिर पहूंचे.... वहां दर्शन करके हम पास ही एक छोटे से लाज़ में एक कमरा लेकर वहां आराम करने के लिए रुक गयें...।
मैं अब तक बहुत खुश थीं... क्योंकि पहली बार अकेले में मैं कही घुमने निकली थीं..... वो भी पतिदेव के साथ... लेकिन मेरी खुशी चंद पलो में ही तब काफूर हो गयीं जब पतिदेव की जुबान से यहाँ आने का कारण जाना....। मैं थकान उतारने के लिए जैसे ही बिस्तर पर लेटी.... पतिदेव अपने पतिधर्म को पूरा करने के लिए मुझ पर हावी हो गये और अपनी थकान अपने तरीके से उतारने लगे.... थकान उतारते ही बोले :- बहुत अच्छा किया तुने... मुझे यहाँ ले आई.... वहां उस छोटे से घर में मुझे प्राइवेसी ही नहीं मिल रहीं थीं... पता नहीं कैसे मैंने कल की रात निकाली हैं.... वैसे इतना तो अब मैं भी समझ गया हूँ की रह तो तु भी नहीं पाती... तभी तो बहाने से मुझे यहाँ ले आई....।
इतना कहकर खिलखिलाकर हसं पड़े और एक बार फिर अपने काम पर लग गयें....। पता नहीं क्यूँ पर मैं उनको कुछ बोल ही नहीं पाई....। हमसफ़र तो वो होता हैं जो आंखों में छिपे आंसू और होठों में दबी बातें भी पढ़ लेता हैं.... पर यहाँ ऐसा कुछ नहीं था.... यहाँ हर बात का अपना ही मतलब निकाला जा रहा था... ना मेरे आंसू उन्हें दिखाई दे रहें थे... ना मेरा दर्द कुछ मायने रखता था...।
अपनी थकान उतारते ही पतिदेव गहरी निद्रा में चले गए... पर मेरी नींद और थकान कोसो दूर चले गए थे...। नहा धोकर मैं कमरे की खिड़की से बाहर सड़क की तरफ़ आने जाने वाले लोगों और भीड़ को देखकर अपने दर्द को छुपाने और कम करने की कोशिश करने लगी....। वहां बैठे बैठे वक्त का पता ही नहीं चला....। हम अगले तीन दिन वहीं रुके थे... इन तीन दिनों में ना जाने कितनी बार मैं बिस्तर पर मर चुकी थीं...। ना उस कमरे से कही बाहर निकलना ना कहीं ओर घूमने जाना.... । वहां आसपास बहुत से मंदिर और पर्यटन स्थल थे.... मन में हजारों सपने लेकर मैं वहां आई थीं.... पर सब काफूर हो चुके थे....। चौथे दिन हम वापस मम्मी के घर चल दिए.... हम दोपहर को वहां पहुंचे और उसी रात को हमें निकलना था...। घर पहुंचते ही मैं पैंकिग में लग गई..... । पापा से मिलने की आस मेरी दिल में ही दफन हो गई... जब मम्मी ने बताया की वो देर रात आने वाले हैं....। मैंने इस पूरे वक्त में ना कुछ खाया ना पीया.... क्योंकि मेरी तबियत मेरा चेहरा ही बयां कर रहा था.... । पर ना मेरी मम्मी को दिख रहा था..... ना पतिदेव को....। जैसे तैसे वक्त निकाल कर मैं मम्मी से विदाई लेकर निकल गयीं.....।
पतिदेव ने रिटर्न में एसी कोच बुक करवाया था.... प्राइवेसी वाला..... अपना पतिधर्म निभाने के लिए....। रात भर वो उसे बखूबी अंजाम देते गयें....। सवेरे तड़के ही मैं अपने ससुराल पहुंची....। लेकिन वहां भी किसी को मेरे लौट आने से कोई फर्क नहीं पड़ा....। पतिदेव तो आते ही सो गये और मैं नहा धोकर अपने बहू के धर्म निभाने में लग गयीं....।
फिर से वहीं रोजमर्रा के काम, वहीं गालीगलौज, वहीं ताने बाने, और वहीं बिस्तर की कहानी.....। समय अपनी रफ्तार से बढ़ रहा था....। मैं पूरी तरह से खामोश हो चुकी थीं....।
अब तो भगवान से भी कुछ अच्छा करने की उम्मीद छोड़ चुकी थीं...। बस जिंदगी को इन सभी के इर्द गिर्द काट रहीं थीं...। मेरी शादी को डेढ़ साल बीत चुका था...ओर एक रोज वो खबर आई जो शायद हर विवाहित महिला महसूस करना चाहतीं हैं....। मेरे जीने की एक वजह.....एक नयीं उम्मीद....एक नया अहसास... मुझसे जुड़ रहा था....। मैं प्रेग्नेंट हुई....।
दिल के किसी कोने में एक छोटी सी आस जगी की शायद अब इस घर में मुझे सुकून के दो निवाले खाने को मिले.... शायद अब इन सभी को थोड़ा सा रहम मुझपर आये...शायद अब पतिदेव की भूख शांत हो जाए....।
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क्या ऐसा होगा....?
कैसा होगा मेरा माँ बनने का सफर....
जानते हैं अगले भाग में....।
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hema mohril
22-May-2024 01:19 PM
V nice
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Mohammed urooj khan
21-May-2024 11:24 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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